My job alarm - (Builder-Buyer Agreement) यूपी का रियल एस्टेट सेक्टर बूम पर है। यहां के प्रोपर्टी रेट इनकी डिमांड के साथ ही बढ़ते ही जा रहे है। यहां के बिल्डिंग बायर्स और बिल्डर्स के लिए ये सबसे जरूरी खबर है। दिल्ली एनसीआर में हर कोई प्रोपर्टी खरीदना (property news) चाहता है। लेकिन आमतौर पर लोग मकान या फ्लैट खरीदते हैं तो बिल्डर को पूरी राशि पहले नहीं चुकाते। आमतौर पर खरीदार 10 फीसदी राशि चुका कर बिल्डर-बायर एग्रीमेंट (Builder-Buyer Agreement) कर लेते हैं। इसके बाद जब फ्लैट तैयार हो जाता है तो पूरी राशि चुकाने के बाद बिल्डर उसकी रजिस्ट्री बायर के पक्ष में कर देते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार का इस बारे में एक नया फैसला बायर के साथ साथ बिल्डर्स की भी टेंशन बढ़ा रहा है। इसमें बिल्डर-बायर एग्रीमेंट को भी रजिस्टर्ड कराने को कहा गया है।
जान लें क्या है यूपी सरकार का नया फैसला
हाल ही में जारी एक रिर्पोट के अनुसार, यूपी सरकार ने एक अहम फैसला किया है कि अगर कोई बायर बिल्डर को फ्लैट की कीमत (price of flat to builder) का 10 प्रतिशत भुगतान पर बिल्डर-बायर एग्रीमेंट करता है तो इसकी भी रजिस्ट्री करानी होगी। इस फैसले ने खरीदारों और डेवलपर्स दोनों के बीच काफी आशंका पैदा कर दी है। मकान के खरीदारों को सरकारी रिकॉर्ड में इसका पंजीकरण सुनिश्चित करने के लिए संपत्ति के मूल्य की एक प्रतिशत राशि स्टांप शुल्क (stamp charges in UP ) के रूप में देना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, उन्हें नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दस्तावेज़ीकरण को अंतिम रूप देने के लिए संपत्ति के मूल्य का 1% पंजीकरण शुल्क भी देना होगा।
पॉलिसी में होगा बदलाव
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यूपी सरकार (UP government news) की यह नीति अन्य राज्यों में चली आ रही प्रथाओं से अलग है। उन राज्यों में बिक्री समझौते में आम तौर पर 1,000 रुपये से 10,000 रुपये तक के न्यूनतम स्टांप पेपर शुल्क शामिल होते हैं। आज के समय में, खरीदार और बिल्डर 100 रुपये के स्टांप पेपर पर एक प्रारंभिक समझौता करते हैं। इसमें अथॉरिटी (up authority) तभी इनवॉल्व होता है जबिक डेवलपर को ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट और प्रोजेक्ट का कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल जाता है।
अब बढ़ जाएगा खर्च
सरकार के इस फैसले की बात की जाए तो इसे लागू करने के पीछे फ्लैट खरीदारों के अधिकारों की रक्षा का तर्क दिया जा रहा है। लेकिन इससे सरकार की भी झोली स्टाम्प शुल्क के जरिये भरेगी। लेकिन ये भी बता दें कि , त्रिपक्षीय समझौते में संपत्ति की विशिष्टताएं, कुल लागत, भुगतान की शर्तें और कब्जे की तिथि भी शामिल होगी। फिर भी, उद्योग के नेता इस जनादेश के संभावित प्रभावों को उजागर करते हैं। उनका कहना है कि मकान के खरीदारों और रियल एस्टेट क्षेत्र (real estate sector) दोनों पर इसका प्रभाव पड़ेगा।
बेवजह में परेशानी
इस मामले पर गौर्स ग्रुप (Gaurs Group CMD) के सीएमडी और क्रेडाई नेशनल (CREDAI) के चेयरमैन मनोज गौड़ के हवाले से रिपोर्ट दी है कि यह एक अनुकूल प्रैक्टिस नहीं होगा। क्योंकि यह मकान के खरीदारों पर अनावश्यक वित्तीय बोझ डालता है। उन्हें बुकिंग के समय पहले से ही एक बड़ी राशि का इंतजाम करना होता है। अन्य राज्यों में, बिक्री समझौते को 1,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच के मामूली स्टांप पेपर पर संसाधित किया जाता है, जो यहां नहीं है। प्रस्तावित 1% गैर-वापसी योग्य पंजीकरण शुल्क जो प्रावधान का हिस्सा है, वह भी खरीदारों के लिए सीधा नुकसान है। कैंसिलेशन के मामले में वापसी नीति पर स्पष्टता की कमी से बेचैनी बढ़ जाती है।
RERA ने जारी किया ये नियम
गौड़ ग्रुप का कहना है कि आम तौर पर किसी भी प्रोजेक्ट में 15-20 प्रतिशत बुकिंग विभिन्न कारणों से कैंसिल कर दी जाती है। इसे RERA द्वारा भी अनिवार्य किया गया है। हालांकि, 'नए विनियमन से उन खरीदारों की वित्तीय स्थिति पर काफी असर पड़ेगा जो अपनी बुकिंग रद्द करना चाहते हैं, क्योंकि वे पहले से ही अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रहे (real estate sector) हैं।
क्या है रियल एस्टेट सेक्टर के विकास में बाधा
फाइनेंसियल एक्सपर्ट का मानना है कि यह प्रावधान नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे (Yamuna expressway) और वास्तव में पूरे राज्य में सेक्टर को काफी हद तक बाधित करेगा। बता दें कि यह क्षेत्र रियल एस्टेट राज्य की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा बनकर उभरा है। इसलिए, उनका मानना है कि इस प्रावधान पर विचार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह राज्य के रियल एस्टेट सेक्टर के विकास में बाधा (Obstacles in the development of real estate sector) उत्पन्न करेगा।
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