My job alarm - (Law Related to Land Dispute in India ) देश में अगर जमीन को लेकर विवादित मामले सामने आते है तो इनके निवारण के लिए भारतीय कानून में कई प्रावधान भी है। लेकिन अधिकतर लोग जानकारी के अभाव के चलते विवाद (land dispute) के घेरे में खुद ही फंस जाते है। अब यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा आखिर होता क्यों है। ऐसे में हम आपको बताते है कि ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि लोगों को कानून और उसकी धाराओं के बारे में पता ही नही होता है। हमारे देश में जमीन से जुड़े विवादों के निपटान को लेकर लोगों में जानकारी का अभाव है। इसलिए विवादों (property dispute) से लोगों का सामना अक्सर होता रहता है।
अब कई बार यही विवाद बहुत बड़ा रूप ले लेते हैं। ऐसे में जमीन से जुड़े मामलों से संबंधित कानूनी प्रावधान (Indian law provisions) और धाराओं की जानकारी होनी जरूरी है। गौरतलब है कि जमीन या संपत्ति से जुड़े मामलों में कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए पीड़ित के पास आपराधिक और सिविल दोनों प्रकार के मामलों में कानूनी सहायता प्राप्त करने का प्रावधान (legal provisions in land dispute) है।
ये है आपराधिक मामलों से संबंधित आईपीसी (IPC)की धाराएं-
धारा 420
भारतीय कानून (Indian law sections) की इस धारा के बारे में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे कि जानकारी न हो। धारा 420 के बारे में लगभग हर कोई जानता ही है। फिर भी हम बता दें कि अलग-अलग तरह के धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े जैसे मामलों से यह धारा संबंधित है। इस धारा के तहत संपत्ति या जमीन से जुड़े विवादों (property dispyte cases in India) में भी पीड़ित के द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
क्या है धारा 406
ये तो आजकल का दस्तूर बन गया है कि लोग उन पर किए गए भरोसे का गलत तरीके से फायदा उठाते हैं। वे उन पर किए गए विश्वास और भरोसे का फायदा उठाकर जमीन या अन्य सम्पत्ति पर अपना कब्जा (property possession) कर लेते हैं। इस धारा के अन्तर्गत पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है और अपनी समस्या का निवारण करवाते है।
धारा 467
जानकारी के अनुसार धारा 467 के तहत अगर किसी की जमीन या अन्य संपत्ति को फर्जी दस्तावेज (forged property document) बनाकर हथिया लिया जाता है और उस पर कब्जा स्थापित कर लिया जाता है,तब इस तरह के प्रोपर्टी के मामले में पीड़ित व्यक्ति आईपीसी की धारा 467 (Section 467 of IPC) के अंतर्गत अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इस तरह से जमीन या संपत्ति पर कब्जा करने के मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस तरह के मामले एक संज्ञेय अपराध होते हैं और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा इन पर विचार किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
जान लें क्या है जमीन या अन्य संपत्ति से संबंधित सिविल कानून
इन सब के अलावा आपको ये भी मालूम होना चाहिए कि जमीन संबंधी विवादों का निपटान (settlement of land disputes) सिविल प्रक्रिया के द्वारा भी किया जाता है। हालांकि कई बार इसमें लंबा समय लग जाता है,लेकिन यह सस्ती प्रक्रिया है। किसी की जमीन या संपत्ति पर अगर गैरकानूनी तरीके से कब्जा (illegal possession) कर लेने पर इसके जरिए भी मामले को निपटाया जाता है। इस तरह के मामले सिविल न्यायालय देखता है।
स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट, 1963?
देश के कानून के बारे में जानना हर किसी का अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है। भारतीय कानून के अनुसार भारत की संसद के द्वारा इस कानून को संपत्ति संबंधी मामलों में त्वरित न्याय के लिए बनाया गया (land dispute sections) था। इस अधिनियम की धारा-6 के द्वारा किसी व्यक्ति से उसकी संपत्ति को बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के छीन लेने या जबरदस्ती उस पर कब्जा कर लेने की स्थिति में इस धारा को लागू किया जाता है। धारा-6 के जरिए पीड़ित व्यक्ति को आसान तरीके से जल्दी न्याय दिया जाता है। हालांकि धारा-6 से संबंधित कुछ ऐसे नियम भी हैं जिनकी जानकारी होना जरूरी है।
धारा-6 से संबंधित कुछ जरूरी नियम
धारा-6 से संबंधित नियमों के तहत न्यायालय के द्वारा जो भी आदेश या डिक्री पारित कर दी जाती है उसके बाद उसपर अपील नहीं की जा सकती।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह धारा उन मामलों में लागू होती है जिनमें पीड़ित की जमीन से उसका कब्जा 6 महीने के भीतर छीना गया हो।अगर इस 6 महीने के बाद मामला दर्ज कराया जाता है तो फिर इसमें धारा 6 के तहत न्याय ना मिलकर सामान्य सिविल प्रक्रिया के जरिए इसका समाधान किया जाएगा। बता दें कि इस धारा के तहत सरकार के विरुद्ध मामला लेकर नहीं आया जा सकता है।
इसके तहत संपत्ति का मालिक,किराएदार या पट्टेदार कोई भी मामला दायर कर सकता (property knowledge) है।
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