सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की। बुधवार (20 नवम्बर, 2024) मामले की सुवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “एक दूसरे के साथ सहमति से रिश्ते में रहे किसी कपल का आपस में रिश्ता टूटने के आधार पर ही आपराधिक कार्रवाई चालू नहीं की जा सकती। अगर किसी रिश्ते में शुरुआत में लड़का और लड़की आपस में अपनी मर्जी से जुड़े थे, और बाद में उनका रिश्ता वैवाहिक जीवन में तब्दील नहीं हो सका, ऐसे में इस आधार पर बाद में इसे आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता।”
क्या था मामला?
यह पूरा मामला 2019 में दिल्ली के रोहिणी में हुई एक FIR से जुड़ा है। इस FIR में एक महिला ने बताया था कि वह दिल्ली में अपने भाई के साथ रहते हुए वोडाफोन के कॉल सेंटर में काम करती थी। महिला ने बताया कि वह एक कॉल के जरिए युवक प्रशांत के सम्पर्क में आई। महिला ने बताया कि नवम्बर,2017 और अप्रैल, 2018 में दोनों के बीच मुलाक़ात भी हुई।
महिला ने आरोप लगाया कि 2019 में प्रशांत को उसके घर का पता लग गया। इसके बाद प्रशांत ने उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाए। महिला ने आरोप लगाया कि इसके बाद कई बार डरा धमका कर उसके साथ रेप किया गया। प्रशांत ने इसके बाद महिला से विवाह करने से भी मना कर दिया।
महिला का यह भी आरोप था कि प्रशांत उसे छतरपुर में अपने कमरे पर ले जाकर उसके साथ संबंध बनाता था। महिला की इस शिकायत का युवक प्रशांत ने विरोध किया। उसने दिल्ली हाई कोर्ट में इस FIR को रद्द करने के लिए याचिका लगाई लेकिन उसे हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली।
इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट को प्रशांत के वकील ने बताया कि आरोप लगाने वाली महिला के पुलिस को दिए गए बयान और उसकी मेडिकल रिपोर्ट से कुछ भी आपराधिक साबित नहीं होता। प्रशांत ने दलील दी कि महिला और युवक, दोनों का प्रेम संबंध था और उन्होंने सहमति से संबंध बनाए थे।
प्रशांत के पक्ष ने कहा कि केवल निजी दुश्मनी के आधार पर यह मुकदमा किया गया है। यह दलील भी दी गई कि महिला ने मेडिकल रिपोर्ट में एक सप्ताह पहले रेप होने की जबकि FIR में जनवरी, 2019 में रेप होने की बात कही है, जो आपस में मेल नहीं खाती। दलील दी गई कि महिला के बयानों में कोई भी समानता नहीं है। इसका सरकारी वकील ने विरोध किया।
कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि महिला ने जहाँ एक तरफ जबरदस्ती संबंध बनाने का दावा किया है वहीं वह 2017 और 2019 में लगातार उससे मिलती भी रही। कोर्ट ने कहा कि ना उसने इस दौरान मुलाक़ात बंद की और ना ही कोई शिकायत दर्ज करवाई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बात मानने योग्य नहीं लगती कि महिला जबरदस्ती संबंध बनाए जाने के बाद भी आरोपित से सहमति से मिलती रही। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपित प्रशांत के महिला का पता ढूंढ लेने की दलील भी नहीं स्वीकारी और कहा कि यह संभवतः उसने खुद ही दिया होगा। कोर्ट ने यह भी पाया कि एक समय पर दोनों शादी का इरादा रखते थे लेकिन यह नहीं हो सका।
कोर्ट ने कहा, “शिकायत करने वाली महिला और आरोपित पुरुष आपस में सहमति से रिश्ते में थे। वे दोनों पढ़े लिखे वयस्क लोग हैं। महिला ने आरोपित के खिलाफ FIR दर्ज करवाने के बाद वर्ष 2020 में किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर लिया। इसी तरह आरोपित की भी वर्ष 2019 में शादी हुई थी। संभवतः वर्ष 2019 में आरोपित की शादी ने ही महिला को उसके खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि तब तक वे सहमति से रिश्ते में थे।” कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में रेप का मामला नहीं बनता।
कोर्ट ने सारे सबूत देखने के बाद पाया कि दोनों के बीच सहमति से ही संबंध बने थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद कहा कि एक दूसरे के साथ सहमति से रिश्ते में रहे किसी कपल का आपस में रिश्ता टूटने के आधार पर ही आपराधिक कार्रवाई चालू नहीं की जा सकती। कोर्ट ने इस मामले में FIR रद्द कर दिया।
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