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मौत के बाद पत्नी साथ रहे, इसलिए पति ने बनवा दिया उसका मंदिर, रोज पहनाता है साड़ी, खिलाता है खाना.

husband built wife temple in her memory

जब कोई अपना हमे छोड़कर हमेशा के लिए चला जाता है तो बड़ा दुख होता है। फिर किसी भी काम में मन नहीं लगता है। कुछ लोग समय के साथ इस दुख को भूलकर आगे बढ़ जाते हैं, वहीं कुछ अपनों के जाने का गम नहीं भूल पाते हैं। वे सोचते हैं कि काश कुछ ऐसा हो जाए कि उनका अपना फिर से उनके पास रहने लगे। अब मौत पर तो किसी का बस नहीं है, लेकिन हाँ हम अपने दिल को समझने के लिए और मृतक की आत्मा की शांति के लिए कुछ और जरूर कर सकते हैं।

मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के एक परिवार ने अपने घर की महिला को खोने के बाद कुछ ऐसा किया कि वह अब हमेशा उनके पास है। दरअसल यहां एक पति ने अपनी पत्नी के निधन के बाद उसकी याद में उसका एक मंदिर बनवा दिया। अब यह मंदिर पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है। आमतौर पर लोग देवी-देवता या फिर किसी बड़ी सेलिब्रिटी के मंदिर ही बनाते हैं, लेकिन इस पति ने अपनी पत्नी का मंदिर बनवा कर उसकी तीन फीट की प्रतिमा भी स्थापित कर दी।

यह अनोखा मंदिर शाजापुर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूर सांपखेड़ा गांव में स्थित है। मंदिर में बंजारा समाज की स्वर्गीय गीताबाई राठौड़ की प्रतिमा है। उनके पति नारायणसिंह राठौड़ और परिवार के अन्य सदस्य रोज इस प्रतिमा की भगवान की तरह पूजा पाठ करते हैं। जब भी घर में कोई शुभ कार्य होता है तो आशीर्वाद लेते हैं। घर में भोजन बनता है तो पहले भगवान को फिर गीताबाई की प्रतिमा को भोग लगाया जाता है। इतना ही नहीं प्रतिमा को घर के लोग रोज नई-नई साड़ी भी पहनाते हैं।

दरअसल 27 अप्रैल को कोरोना की दूसरी लहर के चलते गीताबाई का निधन हो गया था। परिवार ने उन्हें बचाने के लिए लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए थे, हालांकि उनकी जान फिर भी नहीं बच पाई थी। गीताबाई के बेटे मां को भगवान से भी बढ़कर मानते थे। उनके जाने के बाद वे उदास रहने लगे। उनसे मां के जाने का गम बर्दाश्त नहीं हो रहा था। फिर उन्हें मां की याद में एक मंदिर बनाने का आइडिया आया। इसका जिक्र उन्होंने अपने पिता नारायण सिंह से किया। वे भी इस नेक काम के लिए राजी हो गए।

परिवार ने 29 अप्रैल को अलवर के कलाकारों को गीताबाई की प्रतिमा बनाने का ऑर्डर दिया। करीब डेढ़ महीने के बाद मूर्ति बनकर आ गई। बेटा लक्की बताता है कि मां की प्रतिमा को देख ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि वह एक पत्थर की प्रतिमा है। ऐसा महसूस हुआ जैसे वह हमारे पास है। मां की प्रतिमा आने के बाद पंडितों को बुलाया गया और पूर्ण विधि-विधान व प्राण-प्रतिष्ठा से मूर्ति स्थापित की गई।

बेटों का कहना है कि अब मां बस बोलती नहीं है, लेकिन हर पल हमारे साथ रहती हैं। परिवार का हर सदस्य रोज सुबह उठकर उनकी पूजा करता है। वैसे इसके पहले भी कई लोग अपने मृतक परिजनों की याद में उनकी प्रतिमा बनवा चुके हैं।

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