पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ती, प्रतिमा या चित्र के समक्ष की जाती हैं। पूजा करने के बाद अंत में आरती की जाती हैं। हिन्दू धर्म में देवताओं की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व हैं।
आरती एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसे हम जब भी सुनते हैं मन को सुकून मिलता हैं। आरती की मधुर ध्वनि जब भी हमारे कानों में पड़ती हैं तो हमारा मन खुद ही परमात्मा की भक्ति में डूब जाता हैं।
आरती के द्वारा व्यक्ति की भावनायें तो पवित्र होती ही हैं, साथ ही आरती की थाली में जलने वाले दिये का शुद्ध गाय का घी और आरती के समय बजने वाला शंख वातावरण के हानिकारक कीटाणुओं का नाश करता हैं।
अक्सर हमें देखने को मिलता हैं कि जब भी आरती समाप्त होती हैं तो उसके बाद जब सब आरती लेते हैं तो आरती की थाली में पैसे अवश्य चढ़ाते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि सब ऐसा क्यो करते हैं? इसके पीछे 2 कारण हैं। चलिए जानते हैं वो दो कारण कौन से हैं।
एक- धार्मिक दृष्टि से – दान पुण्य को तो हिन्दू धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहा जाता हैं कि मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार दान पुण्य करते रहना चाहिए। दान के लिए श्रीमद्भागवत गीता में भी एक श्लोक है—
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।
जिसका अर्थ हैं – दान देना तो मनुष्य का कर्तव्य है, इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे व्यक्ति को देना चाहिए, जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है। वही दान को सात्त्विक माना गया है।
जैसे मंदिर के पुजारी हमेशा भगवान की सेवा में लगे रहते हैं और निःस्वार्थ उनकी पूजा अर्चना करते हैं। भक्तों की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। वे दान देने के योग्य होते हैं और इसलिए उन्हें पैसे दानस्वरूप दिए जाते हैं।
दूसरा कारण – एक और कारण यह भी है कि पंडितों , ब्राह्मणों का कोई और कार्य नही होता। पूजा पाठ हवन यज्ञ आदि करके जो उनको दान दक्षिणा मिलती हैं उसी से उनका और पूरे परिवार का गुजारा चलता हैं। इसलिय आरती की थाली में पैसे रखने की परम्परा बनाई गई।
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