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404 एकड़ जमीन, बसे हैं 600 हिंदू-ईसाई परिवार: उजाड़ना चाहता है वक्फ बोर्ड, जानिए क्या है केरल का मुनम्बम भूमि विवाद जिसे केंद्रीय मंत्री ने बताया 'बर्बरता'

 एर्नाकुलम जिले के मुनम्बम के तटीय क्षेत्र में वक्फ भूमि विवाद करीब 404 एकड़ जमीन का है। इस जमीन पर मुख्य रूप से लैटिन कैथोलिक समुदाय के ईसाई और पिछड़े वर्गों के हिंदू परिवार बसे हुए हैं।

केरल के एर्नाकुलम जिले के मुनम्बम उपनगर में 404 एकड़ जमीन के वक्फ विवाद की काफी चर्चा हो रही है। इस जमीन विवाद की वजह से राजनीतिक दलों में भी सरगर्मी है। मुनम्बम में करीब 600 हिंदू और ईसाई परिवार इस जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे का विरोध कर रहे हैं।

वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह जमीन 1950 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज की गई थी, जबकि यहाँ रहने वाले लोगों का दावा है कि उन्होंने इस जमीन को कानूनी रूप से दशकों पहले खरीदा था। इस विवाद ने राज्य के उपचुनावों के चलते राजनीतिक पार्टियों के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया है।

विवाद की ऐतिहासिक जड़

एर्नाकुलम जिले के मुनम्बम के तटीय क्षेत्र में वक्फ भूमि विवाद करीब 404 एकड़ जमीन का है। इस जमीन पर मुख्य रूप से लैटिन कैथोलिक समुदाय के ईसाई और पिछड़े वर्गों के हिंदू परिवार बसे हुए हैं। ये परिवार यहाँ दशकों से रह रहे हैं। केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने 1950 के एक वक्फ डीड का हवाला देते हुए इस भूमि पर अपना स्वामित्व जताया है। दूसरी ओर, स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने यह जमीन कानूनी रूप से फारूक कॉलेज से खरीदी थी, जिसे एक समय में इस संपत्ति का प्रबंधन सौंपा गया था।

यह विवाद 1902 से जुड़ा हुआ है, जब त्रावणकोर के शाही परिवार ने इस जमीन को एक प्रमुख व्यापारी अब्दुल सत्तार मूसा सैट को लीज पर दिया था। 1950 में, मूसा सैट के दामाद, मोहम्मद सिद्दीक सैट ने इस जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर दिया और इसका प्रबंधन कोझिकोड के फारूक कॉलेज की प्रबंध समिति के अध्यक्ष को सौंपा। डीड में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि इस जमीन का उपयोग इस्लामी कानून के तहत परोपकारी और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

फारूक कॉलेज ने 1960 के दशक में जमीन पर बसे लोगों कोहटाने की कोशिशेंशुरू की, जिससे कानूनी लड़ाई छिड़ गई। इन निवासियों के पास अपने स्वामित्व के पुख्ता दस्तावेज़ नहीं थे, क्योंकि वे कई पीढ़ियों से इस जमीन पर बसे हुए थे। अंततः, कॉलेज प्रबंधन ने लोगों के साथ कोर्ट से बाहर समझौता करने का फैसला किया और बाजार मूल्य पर उन्हें जमीन के टुकड़े बेच दिए।

केंद्रीय मंत्री ने वक्फ पर लगाए ज्यादा हस्तक्षेप के आरोप

यह मामला अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। भाजपा नेताओं खासकर केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने वक्फ बोर्ड पर ज़्यादा हस्तक्षेप का आरोप लगाया। एक चुनावी रैली में गोपी ने वक्फ के दावों को “बर्बरता” करार दिया और इसे कानूनी उपायों से रोकने का वादा किया। उन्होंने कहा, “इस बर्बरता को भारत में रोका जाएगा… सच्चे संविधान को बनाए रखने के लिए यह विधेयक संसद में पारित होगा।”

भाजपा नेता बी गोपालकृष्णन ने इसे और आगे बढ़ाते हुए कहा कि सबरीमाला और वेलंकन्नी जैसे धार्मिक स्थलों को भविष्य में इसी तरह के दावों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने मतदाताओं से भाजपा का समर्थन करने का आग्रह किया ताकि ऐसे परिणामों को रोका जा सके।

मुख्यमंत्री का रुख और मुस्लिम नेताओं की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने अपनी सरकार का बचाव करते हुए कहा कि वे मुनम्बम के लंबे समय से रह रहे लोगों के साथ खड़े हैं। उन्होंने भाजपा के अभियान को लोगों को गुमराह करने का प्रयास बताया।

वहीं, मुस्लिम नेताओं जैसे समसथा समूह के सदस्यों ने वक्फ बोर्ड की तरफदारी की। ओ एम थरुवाना ने सिराज डेली में लेख लिखते हुए निवासियों के लिए न्याय और वक्फ भूमि की बिक्री में शामिल लोगों की जवाबदेही की माँग की।

'वक्फ का मतलब वक्फ ही रहेगा'

वक्फ शब्द का मतलब है रोकना, सीमित करना और निषेध करना। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, जब एक बार कोई संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित कर दी जाती है, तो वह हमेशा के लिए धार्मिक या परोपकारी उपयोग के लिए ही रह जाती है। शरीयत कानून के अनुसार, एक बार वक्फ संपत्ति घोषित हो जाने के बाद, वह संपत्ति हमेशा वक्फ की ही मानी जाएगी।

वक्फ का तात्पर्य है कि संपत्ति का स्वामित्व व्यक्ति से हटकर अल्लाह को स्थानांतरित हो जाता है। चूँकि संपत्ति का मालिकाना हक वक्फ करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को दे दिया जाता है, इस स्थिति में इसे कभी वापस नहीं लिया जा सकता। संपत्ति का देखभाल करने वाला 'मुतवल्ली' नियुक्त किया जाता है, जो वक्फ संपत्ति का प्रबंधन करता है। चूँकि ये संपत्तियाँ अल्लाह की हो चुकी है, ऐसे में जो एक बार 'वक्फ हो गया, वो हमेशा वक्फ ही रहेगा।'

गुजरात में भी आ चुका है ऐसा मामला

कुछ समय पहले गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की इमारत पर दावा किया था, क्योंकि दस्तावेज़ अपडेट नहीं किए गए थे। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान यह इमारत एक सराय थी और हज यात्राओं के लिए उपयोग होती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान यह संपत्ति ब्रिटिश साम्राज्य की हो गई और आजादी के बाद यह भारत सरकार के अधीन आ गई। दस्तावेज़ों के अद्यतन न होने के कारण, वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि यह संपत्ति अब उनकी है, और जैसा कि वक्फ बोर्ड कहता है, "एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ।"

एक और रोचक मामला गुजरात के द्वारका का है, जहाँ वक्फ बोर्ड ने देवभूमि द्वारका के बेत द्वारका के दो द्वीपों पर दावा करने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय में अर्जी दी थी। अदालत के जज ने यह दावा सुनने से मना कर दिया और वक्फ बोर्ड को अपनी अर्जी में बदलाव के लिए कहा। कोर्ट ने बोर्ड से पूछा कि वक्फ कैसे कृष्ण नगरी की ज़मीन पर दावा कर सकता है। वहीं, केरल में एक गाँव के कई घरों पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा ठोक दिया है।

आपकी सोसायटी में भी बन सकती है मस्जिद

वक्फ संपत्तियों के संदर्भ में एक और दिलचस्प पहलू यह है कि आपकी हाउसिंग सोसाइटी का कोई फ्लैट मालिक अपनी संपत्ति को वक्फ के रूप में दर्ज करा सकता है और वहां मस्जिद बनवा सकता है, बिना अन्य सदस्यों की सहमति के। ऐसा ही मामला सूरत की शिव शक्ति सोसाइटी में हुआ था, जहाँ एक प्लॉट मालिक ने अपने प्लॉट को गुजरात वक्फ बोर्ड में दर्ज करा दिया और वहाँ नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी गई। ऐसे में इस तरह का मामला आपकी सोसायटी में भी आ सकता है।

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