इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति के खिलाफ दहेज के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये आरोप निराधार हैं और व्यक्तिगत विवादों से प्रेरित हैं। अदालत ने इस मामले में कहा कि नैतिक रूप से सभ्य समाज में व्यक्ति यौन इच्छा अपनी पत्नी से व्यक्त नहीं करेगा तो कहां जाएगा।
न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने प्रांजल शर्मा और दो अन्य के खिलाफ इस मामले को खारिज करते हुए कहा कि प्राथमिकी में प्रस्तुत साक्ष्य और गवाहों के बयान, दहेज के लिए उत्पीड़न के दावों का समर्थन नहीं करते। अदालत ने पाया कि प्राथमिक आरोप, दंपति के यौन संबंध से जुड़ी असहमतियों के आसपास केंद्रित हैं और ये विवाद दहेज की मांग से जुड़े नहीं हैं। अदालत ने कहा, 'यह स्पष्ट है कि पक्षों के बीच यह विवाद यौन संबंध स्थापित नहीं होने को लेकर है जिसकी वजह से विपक्षी द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई और दहेज की मांग को लेकर झूठे एवं मनगढ़ंत आरोप लगाए गए।' 'आखिर पति कहा जाएगा....' अदालत ने प्रश्न किया, 'नैतिक रूप से सभ्य समाज में व्यक्ति यौन इच्छा अपनी पत्नी से या पत्नी अपनी यौन इच्छा पति से व्यक्त नहीं करेगी तो वे कहां जाएंगे।'
प्राथमिकी में प्रांजल शुक्ला पर दहेज की मांग करने और पत्नी से गाली गलौज करने के साथ ही उसे अश्लील फिल्में देखने और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया हैं। अदालत ने कहा कि विश्वसनीय साक्ष्य से ये आरोप साबित नहीं हुए। इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, मीशा शुक्ला का विवाह आवेदक प्रांजल शुक्ला के साथ हिंदू रीति रिवाज से सात दिसंबर, 2015 को हुआ था। मीशा ने अपने सास-ससुर मधु शर्मा और पुण्य शील शर्मा पर दहेज मांगने का आरोप लगाया।
हालांकि, प्राथमिकी में यह भी स्पष्ट किया गया कि शादी से पहले दहेज की कोई मांग नहीं थी। प्राथमिकी में यह भी बताया गया कि प्रांजल शराब पीता और अश्लील फिल्में देखता। साथ ही वह अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने पर जोर देता और मना करने पर वह उस पर ध्यान नहीं देता। बाद में वह अपनी पत्नी को छोड़कर सिंगापुर चला गया।
याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विनय शरण ने कहा कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप और विपक्षी के बयान शारीरिक संबंध को लेकर हैं और विपक्षी (पत्नी) द्वारा बयान में मारपीट को लेकर जो आरोप लगाए गए हैं वे याचिकाकर्ता की यौन इच्छा पूरी नहीं करने के संबंध में हैं ना कि दहेज की मांग के लिए। सब मन गढ़ंत कहानी है: अदालत अदालत ने कहा, 'प्राथमिकी और पीड़िता के बयान पर गौर करने से साफ है कि यदि कोई मारपीट की गई तो वह दहेज की मांग के लिए नहीं, बल्कि यौन इच्छा पूरी करने से मना करने के लिए की गई।' अदालत ने तीन अक्टूबर को दिए अपने आदेश में शुक्ला के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा, 'हमारे विचार से मौजूदा प्राथमिकी कुछ और नहीं बल्कि दहेज की मांग को लेकर मनगढ़ंत कहानी है।
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